
शीर्षक: क्या उपराष्ट्रपति पद के ज़रिए बीजेपी 2029 की रणनीति बुन रही है?
राजनीति में प्रतीकों का खेल जितना अहम होता है, उतना ही मायने रखता है समय। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का संसद सत्र के बीच अचानक इस्तीफा देना सिर्फ एक ‘स्वास्थ्य कारण’ भर नहीं माना जा सकता — यह भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की गहराई से सोची गई राजनीतिक चाल का हिस्सा प्रतीत होता है।
कांग्रेस नेता कुंवर अली दानिश द्वारा एक्स पर उठाए गए सवाल इस बहस को और तीखा बना रहे हैं — क्या उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को उपराष्ट्रपति बनाकर दिल्ली की सत्ता की दौड़ से ‘सम्मानपूर्वक’ बाहर किया जाएगा? और क्या यह रणनीति केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के लिए प्रधानमंत्री पद का मार्ग प्रशस्त करने की कड़ी है?
योगी आदित्यनाथ: लोकप्रियता बनाम संतुलन
योगी आदित्यनाथ आज भाजपा के सबसे प्रभावशाली और जनाधार वाले नेताओं में से एक हैं। उनका प्रशासनिक नियंत्रण, हिंदुत्व की मुखर छवि और उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था की सख्ती ने उन्हें मोदी के बाद एक स्वाभाविक उत्तराधिकारी के रूप में स्थापित कर दिया है। यही कारण है कि पार्टी के भीतर उनके बढ़ते प्रभाव को लेकर कई समीकरण बनने लगे हैं।
लेकिन बीजेपी का इतिहास बताता है कि पार्टी नेतृत्व किसी भी संभावित “एकल शक्ति केंद्र” को समय रहते संतुलित करता रहा है। चाहे वह कल्याण सिंह का उदाहरण हो या आडवाणी युग का अवसान। योगी को अगर उपराष्ट्रपति पद का प्रस्ताव दिया जाता है, तो यह न सिर्फ उन्हें ‘सम्मानजनक स्थानांतरण’ होगा, बल्कि 2029 के पहले मोदी-शाह की जोड़ी को खुलकर पार्टी की कमान तय करने की सुविधा भी मिलेगी।
अमित शाह: रणनीतिकार का नया दौर?
पार्टी के भीतर यह चर्चा अब तेज हो चुकी है कि 2029 में अगर नरेंद्र मोदी सक्रिय राजनीति से दूर जाते हैं तो क्या अमित शाह प्रधानमंत्री पद के प्रमुख दावेदार होंगे? ऐसे में योगी जैसे ताकतवर और स्वतंत्र छवि वाले नेता की मौजूदगी ‘रास्ते की बाधा’ बन सकती है। यदि योगी को उपराष्ट्रपति बना दिया जाए, तो संविधानिक रूप से उन्हें दलगत राजनीति से अलग कर दिया जाएगा। यह भविष्य की राजनीति का नक्शा बदलने वाला कदम हो सकता है।
आरएसएस की भूमिका: संकेत या आदेश?
धनखड़ के इस्तीफे को कई विश्लेषक RSS का इशारा मान रहे हैं। यह भी संभव है कि संघ अब ऐसी भूमिका चाहता हो जहां 2029 की सत्तांतरण प्रक्रिया बिना टकराव के पूरी हो। ऐसे में ‘संवैधानिक पदों’ का संतुलन बनाना भी आवश्यक है। योगी को यदि दिल्ली बुलाया जाता है, लेकिन प्रधानमंत्री की बजाय उपराष्ट्रपति के रूप में, तो यह बीजेपी की ‘एक तीर दो निशाने’ वाली रणनीति होगी — उत्तर प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन और दिल्ली में नियंत्रण सुनिश्चित करना।
निष्कर्ष:
धनखड़ का इस्तीफा कोई साधारण कदम नहीं है। यदि इसके बाद योगी आदित्यनाथ को उपराष्ट्रपति बनाया जाता है, तो यह भाजपा की बहुत बड़ी और लंबी रणनीति का हिस्सा है — जिसमें 2029 का सत्ता हस्तांतरण, पार्टी नेतृत्व की दिशा, और आरएसएस की भूमिका — सब कुछ पुनर्परिभाषित किया जाएगा। सवाल यह नहीं कि योगी दिल्ली आएंगे या नहीं, सवाल यह है कि क्या उन्हें सिंहासन मिलेगा या सिंहासन से दूर किया जाएगा — और यही तय करेगा भाजपा का भविष्य पथ।
– विशेष संपादकीय | विशाल समाचार विश्लेषण डेस्क

